नाटक में कर्ण के जन्म से लेकर जीवन के अंत तक की कथा को बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया। कुंती द्वारा त्यागे जाने से लेकर राधा-अधिरथ के स्नेह, गुरु द्रोणाचार्य और परशुराम द्वारा तिरस्कार, सूतपुत्र होने का सामाजिक दंश, इंद्र द्वारा कवच-कुंडल का छल से हरण और अंततः महाभारत युद्ध में अपने आदर्शों पर अडिग रहने तक के हर प्रसंग को जीवंतता के साथ मंचित किया गया।
गोरखपुर महोत्सव के चौथे दिन मंगलवार को योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में महाभारत के महानायक कर्ण के जीवन पर आधारित नाटक ‘कर्ण गाथा’ का भावपूर्ण मंचन हुआ। भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ के रंगमंडल की ओर से प्रस्तुत इस नाटक ने दर्शकों को एक ऐसा अनुभव दिया जिसमें भाग्य, कर्म, कर्तव्य और वीरता का समागम देखने को मिला। नाटक के दौरान दर्शक पूरी तरह से भावनाओं में डूबे नजर आए और हर दृश्य पर तालियों की गूंज सुनाई दी।

